Thursday 1 August 2024

31st July premchand jayanti

23rd JULY BAL GANGADHAR TILAK BIRTHDAY CELEBRATION

 23rd JULY BAL GANGADHAR TILAK BIRTHDAY CELEBRATION





बाल गंगाधर तिलक (अथवा लोकमान्य तिलक, मूल नाम केशव गंगाधर तिलक, 23 जुलाई 1856 - 1 अगस्त 1920), एक भारतीय राष्ट्रवादीशिक्षकसमाज सुधारकवकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक काल में उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता के लिये नये विचार रखे और अनेक प्रयत्न किये। अंग्रेज उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें, "लोकमान्य" का आदरणीय पदवी भी प्राप्त हुई, जिसका अर्थ है "लोगों द्वारा स्वीकृत" (उनके नायक के रूप में)

1891 ई० में बाल विवाह को प्रतिबन्धित करने वाला एक प्रस्ताव लाया गया, जिसे 'मालाबारी प्रस्ताव' कहा जाता है। इसके परिणामस्वरूप एक अधिनियम पारित हुआ, जिसे 'आयु सम्मति अधिनियम' (Age of Consent Act) कहा गया, जिसमें 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के विवाह पर रोक लगा दी गयी। इस अधिनियम का बाल गंगाधर तिलक ने विरोध किया था[1] ।[2]

लोकमान्य तिलक स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे। वे भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने बिपिन चन्द्र पाललाला लाजपत रायअरविन्द घोष और वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै आदि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं के साथ भारत के स्वराज के लिये निकट सहयोग किया। तिलक को कई कारणों से जातिवादी व स्त्री शिक्षा का विरोधी भी देखा जा सकता है ।

लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी के लोगों में से एक थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्षिण शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे।[3]

राजनीतिक यात्रा

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लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति का एक दुर्लभ चित्र जिसमें बायें से लाला लाजपतराय, बीच में लोक्मान्य तिलक जी और सबसे दायें श्री बिपिनचन्द्र पाल बैठे हैं
सन १९०७ में सूरत कांग्रेस के पश्चात राष्ट्रवादियों की सभा को सम्बोधित करते हुए बालगंगाधर तिलक । इस सभा की अध्यक्षता अरविन्द घोष ने की थी।

लोकमान्य तिलक ने इंग्लिश मेमराठा व मराठी में केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किये जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। उन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।[4]

लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट जी और मुहम्मद अली जिन्ना के समकालीन होम रूल लीग की स्थापना की।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

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लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1890 में जुड़े। हालांकि, उसकी मध्य अभिवृत्ति, खासकर जो स्वराज्य हेतु लड़ाई के प्रति थी, वे उसके ख़िलाफ़ थे। वे अपने समय के सबसे प्रख्यात आमूल परिवर्तनवादियों में से एक थे।[5]

अल्पायु में विवाह करने के व्यक्तिगत रूप से विरोधी होने के बावजूद, लोकमान्य तिलक 1891 एज ऑफ़ कंसेन्ट विधेयक के खिलाफ थे, क्योंकि वे उसे हिन्दू धर्म में अतिक्रमण और एक खतरनाक उदाहरण के रूप में देख रहे थे। इस अधिनियम ने लड़की के विवाह करने की न्यूनतम आयु को 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया था।

राजद्रोह के आरोप

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केसरी का सम्पादकीय

लोकमान्य तिलक ने अपने पत्र केसरी में "देश का दुर्भाग्य" नामक शीर्षक से लेख लिखा जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया। उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया।[6]

भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था।" 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा।"

माण्डले में कारावास

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ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया। इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक पत्र से प्राप्त हुई।[7]

आल इण्डिया होम रूल लीग

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बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में एनी बेसेंट की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की। होम रूल आन्दोलन के दौरान  बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धि मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। इसमें चार या पांच लोगों की टुकड़ियां बनाई जाती थी जो पूरे भारत में बड़े-बड़े राजनेताओं और वकीलों से मिलकर 'होम रूल लीग' का मतलब समझाया करते थे। एनी बेसेंट, जो आयरलैंड से भारत आई हुई थीं, उन्होंने वहां पर होमरूल लीग जैसा प्रयोग देखा था, उसी तरह का प्रयोग उन्होंने भारत में करने का सोचा।[8]

सामाजिक योगदान और विरासत

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सन १९५६ में लोकमान्य तिलक पर भारत सरकार द्वारा जारी एक डाक टिकट

लोकमान्य तिलक ने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान 'पूर्ण स्वराज' की मांग उठाई। उन्होंने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया। इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।[9] नागरी प्रचारिणी सभा के वार्षिक सम्मेलन में भाषण करते हुए उन्होने पूरे भारत के लिए समान लिपि के रूप में देवनागरी की वकालत की और कहा कि समान लिपि की समस्या ऐतिहासिक आधार पर नहीं सुलझायी जा सकती। उन्होने तर्कपूर्ण ढंग से दलील दी कि रोमन लिपि भारतीय भाषाओं के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है।[10] १९०५ में नागरी प्रचारिणी सभा में उन्होने कहा था, "देवनागरी को समस्त भारतीय भाषाओं के लिए स्वीकार किया जाना चाहिए।"[11]

सन 1919 ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिये स्वदेश लौटने के समय तक लोकमान्य तिलक इतने नरम हो गये थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के द्वारा स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गान्धी जी की नीति का विरोध ही नहीं किया। इसके बजाय लोकमान्य तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिये प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके प्रत्युत्तरपूर्ण सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नये सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही १ अगस्त,१९२० ई. को बम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी। मरणोपरान्त श्रद्धाञ्जलि देते हुए गान्धी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बतलाया।

कृतियाँ

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लोकमान्य तिलक ने यूँ तो अनेक पुस्तकें लिखीं किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गयी गीता-रहस्य सर्वोत्कृष्ट है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

उनकी लिखी हुई सभी पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है[12]-

  • 'द ओरिओन' (The Orion)
  • द आर्कटिक होम ऑफ द वेदाज (The Arctic Home in the Vedas, (1903))
  • श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य (माण्डले जेल में)
  • The Hindu philosophy of life, ethics and religion (१८८७ में प्रकाशित).
  • Vedic Chronology & Vedang Jyotish (वेदों का काल और वेदांग ज्योतिष)
  • टिळक पंचांग पद्धती (इसका कुछ स्थानों पर उपयोग होता है, विशेषतः कोकण, पश्चिम महाराष्ट्र आदि)
  • श्यामजी कृष्ण वर्मा एवं अन्य को लिखे लोकमान्य तिलक के पत्र (एम. डी. विद्वांस यांनी संपादित)
  • Selected documents of Lokamanya Bal Gangadhar Tilak, 1880-1920, (रवीन्द्र कुमार द्वारा संपादित)

उनकी समस्त पुस्तकें मराठी अँग्रेजी और हिन्दी में लोकमान्य तिलक मन्दिर, नारायण पैठ, पुणे से सर्वप्रथम प्रकाशित हुईं। बाद में उन्हें अन्य प्रकाशकों ने भी छापा।









18 JULY Nelson Rolihlahla Mandela BIRTHDAY CELEBRATION

 Nelson Rolihlahla Mandela



born Rolihlahla Mandela; 18 July 1918 – 5 December 2013) was a South African anti-apartheid activist, politician, and statesman who served as the first president of South Africa from 1994 to 1999. He was the country's first black head of state and the first elected in a fully representative democratic election. His government focused on dismantling the legacy of apartheid by fostering racial reconciliation. Ideologically an African nationalist and socialist, he served as the president of the African National Congress (ANC) party from 1991 to 1997.

He ran away to the big city of Johannesburg and it was there that he came into contact with apartheid, which means 'apartness'. Blacks were separated from the whites and they were treated badly and unfairly. Nelson hated injustice and could not accept the way that people were treated differently because of the colour of their skin. 
   He didn't want his children – or any South African children – to grow up with apartheid. He said that he was prepared to die to give the children a better future. His struggle against apartheid and for the freedom of South Africa's children cost him 27 years in prison. 



BOOKS ON AND BY NELSON MANDELL

Long Walk to Freedom is an autobiography by South Africa's first democratically elected President Nelson Mandela, and it was first published in 1994 by Little Brown & Co. The book profiles his early life, coming of age, education and 27 years spent in prison. Wikipedia
Long Walk to Freedom











image of Long Walk to Freedom

Saturday 8 June 2024

PM SHRI BOOK EXHIBTION APRIL MONTH

 PM SHRI BOOK EXHIBTION APRIL MONTH  2024












12TH APRIL AMBEDKAR JAYANTI 2024

CELEBRATION OF  12TH  APRIL AMBEDKAR JAYANTI 2024


अम्बेडकर जयंती

भीम जयंती या अंबेडकर जयंती “भारतीय संविधान के निर्माता” डॉ. अंबेडकर के जन्मदिन को चिह्नित करती है। अंबेडकर जयंती 2024 14 अप्रैल को दलित आइकन के सम्मान में मनाई जाएगी, जिन्होंने अपना सारा काम और जीवन मजदूरों, महिलाओं और अछूतों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। डॉ. बीआर अंबेडकर ने न केवल देश को अपना संविधान दिया, बल्कि भारत की केंद्रीय बैंकिंग संस्था, भारतीय रिजर्व बैंक के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और न्यायविद, वह भारत के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक, दलित बौद्ध आंदोलन के पीछे सबसे महत्वपूर्ण शक्ति थे।

एक संक्षिप्त इतिहास

बाबासाहेब अंबेडकर जयंती की शुरुआत 1990 में डॉ. अंबेडकर के जीवन का जश्न मनाने के लिए की गई थी। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक निम्न आय वाले परिवार में हुआ था। वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे और उन्होंने कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत मेहनत की थी। वे कानून और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ थे। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया विश्वविद्यालय दोनों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। ​​वे एक राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे जिन्होंने जाति व्यवस्था और भारत के सामने मौजूद कई अन्य समस्याओं से लड़ने के लिए कड़ी मेहनत की।

अम्बेडकर जयंती के दौरान समारोह

पूरा देश डॉ. अंबेडकर का जन्मदिन मनाता है, खास तौर पर महिलाएं, आदिवासी, दलित, मजदूर और अन्य सभी समुदाय जिनके लिए उन्होंने संघर्ष किया और बदलाव के लिए प्रेरित किया। भारत और दुनिया भर में स्थित अंबेडकर की तस्वीरों और मूर्तियों पर माला चढ़ाकर उन्हें याद किया जाता है क्योंकि बहुत से लोग इस समाज सुधारक के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करते हैं। हाल के वर्षों में, संयुक्त राष्ट्र ने भी अंबेडकर जयंती मनाई है।

बाबासाहेब अंबेडकर जयंती पर पूरे देश में कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों और समुदायों में कई अभ्यास और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। यह दिन व्यापक रूप से मनाया जाता है क्योंकि अंबेडकर का दर्शन आज भी वर्तमान समाज के लिए प्रासंगिक है। भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को आकार देने में उनकी सक्रिय भूमिका के बिना, पुरातन मान्यताओं वाले देश से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश बनने की कोई प्रगति असंभव होती।

जश्न मनाने के कारण

भारत में डॉ. अंबेडकर का जन्मदिन मनाने का कारण भारत के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और भारत के गरीबों के लिए उनके योगदान को याद करना और उनका सम्मान करना है। भारतीय संविधान बनाने के पीछे उनका सबसे महत्वपूर्ण दिमाग था। उन्होंने शिक्षा के महत्व को फैलाने और कम आय वाले लोगों की वित्तीय स्थिति को समृद्ध करने के लिए 1923 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। उन्होंने मंदिर प्रवेश आंदोलन, पुजारी विरोधी आंदोलन, जाति विरोधी आंदोलन आदि जैसे कई सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने समान अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और जीवन भर एक अर्थशास्त्री और समाज सुधारक रहे।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान

डॉ. अंबेडकर ने समाज में कई बदलाव किए जिन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए कई आंदोलन चलाए। इनमें से कुछ सबसे उल्लेखनीय कार्यक्रम मूक नायक, समानता जनता आदि हैं। 1947 में देश के ब्रिटिश सरकार के शासन से मुक्त होने के बाद उन्हें कांग्रेस सरकार द्वारा पहला कानून मंत्री बनने के लिए आमंत्रित किया गया था। 29 अगस्त 1947 को वे संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष बने।

उन्होंने देश का नया संविधान बनाया, जिसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने अपनाया। चूँकि वे एक अर्थशास्त्री थे, इसलिए सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, जिसे वर्तमान में भारतीय रिज़र्व बैंक के नाम से जाना जाता है, के निर्माण में उनका योगदान बहुत बड़ा था। वे “ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन और वित्त”, “रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान” और “ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास” पुस्तकों के लेखक थे। ये पुस्तकें आज भी भारत और दुनिया भर में युवा पीढ़ी के मन को प्रेरित करती हैं।

अवलोकन और रीति-रिवाज

अंबेडकर जयंती पर, भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति द्वारा बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करना प्रथागत है। भारत के कई लोग अंबेडकर जयंती 2024 पर सम्मेलनों और व्याख्यानों में भाग लेकर इस दिन का सम्मान करते हैं जो भारतीयों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं के समाधान खोजने के लिए समर्पित हैं। अन्य लोग इस दिन का उपयोग शांत ध्यान और चिंतन के लिए करने की योजना बनाते हैं।

डॉ. अंबेडकर के जन्मदिन पर भारत के सबसे महान दिमागों में से एक को सम्मान देने से बेहतर कुछ नहीं है। अर्थव्यवस्था और डॉ. अंबेडकर के जीवन के बारे में अधिक जानने के लिए अंबेडकर जयंती 2024 पर भारत के विभिन्न हिस्सों में व्याख्यान और सम्मेलनों में भाग लें। 


SPEECH ON AMBEDKARN JAYANTI 9TH C AND QUIZ AFTER SPEECH



BIOGRAPHY MAKING ACTIVITY  ON AMBEDKAR JAYANTI




Friday 7 June 2024

LIBRARY ORIENTATION OF 6TH CLASS APRIL 2024

 LIBRARY ORIENTATION OF 6TH CLASS APRIL 2024

The Library Orientation program offers 6TH CLASS students an introduction to the library's resources and services. the program also touches on academic integrity the intrigues in the art of database searching. Objectives of Orientation. To familiarize students with the library facility, resources and services.








WORLD BOOK AND COPYRIGHT DAY 23 APRIL 2024

 WORLD BOOK AND COPYRIGHT DAY 23 APRIL 2024

What is Copyright?

It is a legal concept, enacted by most governments, giving authors or creators of original work exclusive rights usually for a limited time. Basically, it is the right to copy. It also gives the copyright holder the right to be credited for the work and other, related rights. So, it is an intellectual property form.

World Book and Copyright Day, also known as World Book Day, is celebrated in over 100 countries around the globe to honour the great works by authors around the world. The special day has been marked by the United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization (UNESCO) as an attempt to promote the love of reading, writing books, translations, publishing and copyright.

History:

The idea to observe World Book Day was first conceived by Valencian writer Vicente Clavel Andres as a means to honour the renowned author, Miguel de Cervantes (best-known for Don Quixote), first on his birth anniversary, October 7, followed by his death anniversary, April 23. UNESCO then decided that World Book and Copyright Day would be celebrated on April 23 annually, since this date is also the death anniversary of prominent authors such as William Shakespeare and Inca Garcilaso de la Vega.

However, there is a plot twist in this historical fact. As per historical coincidence, both Shakespeare and Cervantes died on the same date April 23, 1616, but not on the same day. Back then, Spain followed the Gregorian calendar, while England followed the Julian calendar. As per the Gregorian calendar, Shakespeare died ten days later after Cervantes did, i.e. on May 3.

World Book Day 2024: Theme

The theme for this year's World Book and Copyright Day is 'Read Your Way'. This theme emphasises on the importance of cultivating a passion for reading.


MAKE LIFESKECTH OF AUTHORS WHO BORN IN APRIL MONTH


POSTER MAKING ON WORLD BOOK AND COPYRIGHT


SPEECH ON WORLD BOOK AND COPYRIGHT DAY